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"आरती देवी बगलामुखी माँ " शीघ्र सफलता देने वाली,एवं काले जादू जैसे भयंकर तंत्रो मारण-मोहन-उच्चाटन-वशीकरण-विद्वेषण-स्तंभन से रक्षा करती हैं |

माँ पीताम्बरा की पूजा करने से मुक़दमे मे जीत, झगड़ो मे सफलता,  बॉस से अनबन दूर होती है, बच्चों की गलत आदतों व संगत से छुटकारा मिलता है |

 परिवार मे अनुचित प्रेम-प्रपंच ख़त्म होते हैं, विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है, अर्थाथी को धन, पुत्र चाहने वाले को पुत्र, सुयोग्य पति या पत्नी को चाहने को सुयोग्य वर -वधु मिलता है |

व्यापारियों-राजनीतिज्ञो-प्रोफेशनलो-खिलाड़ियों-कर्मचारियों- कलाकारों के मार्ग की बाधा दूर कर उन्हें उनके लक्ष्य की प्राप्ति कराती हैं |

"व्रत एवं आरती देवी बगलामुखी माँ" के प्रभाव व आशीर्वाद से मैंने हज़ारो जिंदगी संवरते  देखी है, उनमें से मेरे कुछ प्रिय लोगों के अनुभव  ब्लॉग मे  साझा  करता  रहूंगा, आपसे भी प्रार्थना है कि माँ की दयादृष्टि से जो परिवर्तन आपके जीवन मे हुये हैं, शेयर करें तथा माँ की पूजा का प्रचार करें,

ताकि लोग क़ब्र, मजार, दरगाह, मौलाना, तांत्रिको, ओझाओ के चक्कर मे फंसने के बजाय माँ बगलामुखी की पूजा करके काले जादू जैसे तंत्र – मंत्र -जादू -टोना -भूत -प्रेत -ग्रह-वास्तु आदि से अपनी , परिवार व अपनों की रक्षा खुद करने मे समर्थ हों |

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Goddess Baglamukhi Aarti

जय पीताम्बरधारिणी जय सुखदे वरदे, मातर्जय सुखदे वरदे

  भक्त जनानां क्लेशं भक्त जनानां क्लेशं सततं दूर करे ।।                        जय देवि जय देवि ।।१।।

असुरैः पीडितदेवास्तव शरणं प्राप्ताः, मातस्वशरणं प्राप्ताः   

धृत्वा कौर्मशरीरं धृत्वा कौर्मशरीरं दूरीकृतदुःखम् ।।                                    जय देवि जय देवि ।।२।।

मुनिजनवन्दितचरणे जय विमले बगले, मातर्जय विमले बगले।

 संसारार्णवभीतिं संसारार्णवभीतिं नित्यं शान्तकरे ।।                                 जय देवि जय देवि ।।३।।

नारदसनकमुनीन्द्रैर्ध्यातं पदकमलं मार्तध्यातं पदकमलं   

हरिहरद्रुहिणसुरेन्द्रैः हरिहरद्रुहिणसुरेन्द्रैः सेवितपदयुगलम् ।।                     जय देवि जय देवि ।।४।।

काञ्चनपीठनिविष्टे मुदगरपाशयुते, मातर्मुदगरपाशयुते    

जिह्वावज्रसुशोभित जिह्वावज्रसुशोभित पीतांशुकलसिते ।।                                      जय देवि जय देवि ।।५।।

   बिन्दुत्रिकोणषडस्त्रैरष्टदलोपरिते, मातरष्टदलोपरिते   

षोडशदलगतपीठं षोडशदलगतपीठं भूपुरवृत्तयुतम् ।।                                       जय देवि जय देवि ।।६।।

    इत्थं साधकवृन्दश्च़िन्तयते रूपं मातश्च़िन्तयतेरूपं  

 शत्रुविनाशकबीजं शत्रुविनाशकबीजं धृत्वा हृत्कमले ।।                                         जय देवि जय देवि ।।७।।

अणिमादिकबहुसिद्धिं लभते सौख्ययुतां, मातर्लभते सौख्ययुतां

भोगानभुक्त्वा सर्वान् भोगानभुक्त्वा सर्वान् गच्छति विष्णुपदम्                                 जय देवि जय देवि ।।८।।

पूजाकाले कोsपि आर्तिक्यं पठते, मातरार्तिक्यं पठते  

 धनधान्यादिसमृद्धः धनधान्यादिसमृद्धः सान्निध्यं लभते ।।                                         जय देवि जय देवि ।।९।।

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